बातां बड़ी बणाय, काम काढ लै आपरौ। सिळगतड़ी सिळगाय, हंसता बैठे ओट में।।
बातां बड़ी बणाय, काम काढ लै आपरौ। सिळगतड़ी सिळगाय, हंसता बैठे ओट में।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 मिनट पढ़ें
बातां बड़ी बणाय, काम काढ लै आपरौ।
सिळगतड़ी सिळगाय, हंसता बैठे ओट में।।
जो धूर्त चालाक होता है वह बड़ी बडी बातें बनाकर, किसी न किसी प्रकार से अपना काम निकाल लेता है। अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेता है। ऐसे धूर्त अपना स्वार्थ सिद्ध करके अकेले बैठकर खुश होते हैं। वो किसी के सगे नहीं होते उन्हें बस अपना स्वार्थ ही दिखता है और उसी को प्राप्त करने की लालसा। जो उसके जाल में फंसता है उसकी हानि निश्चित है।
एक सिंह जंगल में भूखा बैठा था, उसे कोई शिकार नहीं मिला था। गीदड़ ने सिंह के पास आकर तब कहा कि आप चिंता मत कीजिए, मैं आपके लिए शिकार ढूंढ करलाता हूं। गीदड़ गया तो उसने एक मोटे ताजे गधे को चरता देखा। गीदड़ ने गधे सेकहा कि यहां चरने को या धरा है, तुम मेरे साथ आओ, मैं तुहें हरी हरी घासबतलाऊंगा। तथा एक बात और भी है,जंगल के राजा केशरी का मंत्री मर गया है,अत: मैं राजा से तुहें मंत्री बना लेने के लिए भी सिफारिश कर दूंगा। ही घास चरनेऔर मंत्री बनने के सपने देखता हुआ गध गीदड़ के साथ चल पड़ा। शेर ने गधे कोदूर से ही देखा और वह गधे की ओर दौड़ा। गधा प्राण बचाकर भागा। तब गीदड़ नेसिंह से कहा कि आपने व्यर्थ ही जल्दबाजी में शिकार को खो दिया। गधा तो आपकेपास आ ही रहा था। खैर, अब मैं दुबारा जाता हूँ, इस बार जल्दीबाजी न करना।गीदड़ फिर से गधे को लाने के लिए चल पड़ा। वह सोच रहा था कि अब गधा सहजही नहीं आएगा, कुछ न कुछ लड़ानी पड़ेगी। गीदड़ गधे के पास फिर पहुंचा और तानामारते हुए बोला कि तुम तो वाकई निरे गधे ही रहे, तुम राजाओं की रीति को भलाया जानो। राजा तो तुहारी अगवानी के लिए आ रहा था। अब जंगल का राजा मेरे ऊपर नाराज हो गया है कि तुम किस गंवार को ले आए, जिसे इतनी भी तमीज नहीं।मैंने किसी प्रकार राजा को शांत कर दिया है। तुम चलो और राजा के पैरों पर गिरकरमाफी मांगों, राजा अवश्य तुहें मंत्री बना लेगा। गधा गीदड़ की बातों में आ गया। मंत्री बनने के लालच में गधा फिर गीदड़ के साथ हो लिया। इस बार जब वे दोनों पहुंचेतो सिंह चुपचाप बैठा रहा। उसके पास पहुंच कर जैसे ही गधे ने माफी मांगी, शेर उस पर टूट पड़ा और गधे को मार डाला। गधे को मारने के बाद सिंह उसे खाने जारहा था कि गीदड़ ने कहा कि महाराज, गधा एक अपवित्र जानवर होता है। दिन रातघूरों पर चरतार रहता, अत आप पहले स्नान कर आइए। सिंह स्नान करने गया तो गीदड़ ने गधे की आंखों और कलेजा खा लिया। सिंह आया तो उसने गीदड़ से पूछाकि इसकी आंखें और कलेजा कहां है? गीदड ऩे उतर दिया कि महाराज, इसके हृदय अर्थात कलेजा और आंखें तो थी ही नहीं। यदि होती तो यह हृदय से सोचता और आंखों से देखता, तब एक बार बचकर भागने के बाद भी दुबारा मरने के लिए क्यों आता? अब बेचारे सिंह को मानना ही पड़ा कि उसके कलेजा और आंखें थी ही नहीं।