चंगा माढू घर रह्यां, ऐ ति अवगुण होय। कपड़ा फाटै रिण वधै, नांव न जाणै कोय।।
चंगा माढू घर रह्यां, ऐ ति अवगुण होय। कपड़ा फाटै रिण वधै, नांव न जाणै कोय।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
चंगा माढू घर रह्यां, ऐ ति अवगुण होय।
कपड़ा फाटै रिण वधै, नांव न जाणै कोय।।
आदमी के घर बैठे रहने से ये तीन अवगुण हो जाते हैं-कपड़े फटते हैं, कर्ज बढता है और कोई नाम भी नहीं जानता है। इसलिए कहीं परदेश में जाकर उद्यम करना चाहिए।
एक गांव में एक सेठ रहता था। लेकिन वह कहने भर को ही सेठ था, दरिद्रताउसके घर पर अपना पूरा अधिकार जमा चुकी थी। दो जून खाने के भी लाले पड़ेहुए थे। सेठ की स्त्री नित्य अपने पति से कहती कि कुछ कमाकर लाओ तो किसीप्रकार काम चले। लेकिन सेठ को कमाने का कोई रास्ता नहीं सूझता था। पत्नीके बहुत आग्रह करने पर एक दिन सेठ ने उससे कहा कि कल कमाने के लिए जाऊंगा, इसलिए थोड़ा चूरमा बना देना। अगले दिन सेठानी ने किसी प्रकार जुगाड क़र के थोड़ा सा चूरमा बनाया। शकुन स्वरूप थोड़ा सा चूरमा सेठ ने खाया और बाकी के दो लडडू बनाकर सेठानी ने पति के अंगोछे में बांध दिए। सेठ कमाने के लिए घर से चल पड़ा। चलते चलते शाम हो गई। वह एक तालाब पर पहुंचा।वहां बैठकर उसने लडडू खाए और पानी पीकर सो गया। अगले दिन सेठ प्रात ही उठा और आगे बढा। चलते चलते वह एक गांव में पहुंचा। गांव बड़ा था, बहुत सी दुकानें थी और ऊंच ऊंचे मकान भी थे। लेकिन सेठ ने देखा कि गांव में सभी आदमियों के बाल और नाखून बेहिसाब बढे हुए हैं, जैसे किसी की हजामत न बनी हो। सेठ की सहज बुद्धि में यह बात आ गई कि यहां कोई नाई नहीं है। सेठ ने अपना कार्य तय कर लिया और अपने घर को लौट पड़ा। सेठानी ने अपने पति को इस प्रकार वापस आया देखकर पूछा कि इतनी जल्दी कैसे लौट आए? सेठ ने उत्तर दिया कि अच्छा रोजगार देखकर आया हूं, यदि तुम मुझे किसी प्रकार दसरूपये लाकर दे सको तो अच्छी कमाई हो सकती है। सेठ के विश्वास दिलाने पर सेठानी ने पास पड़ोस से किसी प्रकार दस रूपये लाकर अपने पति को दे दिए।सेठ रूपये लेकर चल पड़ा। उसने राछों से युक्त एक रछैनी खरीदी और उसे अपनी बगल में दबाकर उसी गांव में जा पहुंचा। बाल बनवाने वालों का जमघट लग गया। गांव वालों ने इसे एक ईश्वर प्रदा संयोग ही समझा और बाल बनवाई के मुंह मांगे दाम खुशी खुशी देने लगे। थोड़े ही दिनों में सेठ के पास अच्छी रकम जुड़ गई और वह अपने घर लौटा। रूपयों की थैली देखकर सेठानी बहुत खुशीहुई। उसने सेठ से पूछा कि इतनी जल्दी इतने रूपये कहां से ले आए? सेठ नेकहा कि यह सब फिर बताऊंगा, आज तो तुम घर में हलवा बनाओ, बहुत समय हो गए हलवा खाए।
जब सेठ ने घर में हलवा बनाने का कहा तो सेठानी पड़ोसिन के यहां कड़ाही मांगने के लिए गई। सेठानी के पास हलवा बनाने की कड़ाही नहीं थी। पड़ोसिन को यह जानकार आश्चर्य हुआ कि उसके घर हलवाबनाया जा रहा है। पड़ोसिन ने सेठानी से पूछा कि सेठ इतने रूपये कहां से ले आया, इसका रहस्य मुझे भी बतलाओ। सेठानी ने पड़ोसिन को विश्वास दिलातेहुए कहा कि मैं अपने पति से अवश्य ही यह सब पूछ कर तुहें बताऊंगी। सेठको हलवा खिला देने के बाद सेठानी ने इस बारे में पूछा तो सेठ ने बात टालने की बहुत चेष्ट की। लेकिन जब उसने अधिक आग्रह किया तो सेठ ने विषाद-पूर्णस्वर में कहा कि या बार बार पूछती हो। ये रूपये आक चबा कर लाया हूं। सेठानी ने कडाही लौटाते हुए पड़ोसिन को ऐसा ही कह दिया। अब पड़ोसिन अपने पतिको इस तरह धन कमा कर लाने के लिए प्रेरणा देने लगी। उसने आक चबाने वाली बात भी अपने पति को बतला दी। पहले तो उसके पति ने उसकी बात कोइस कान से सुनकर उस कानसे निकाल दिया। लेकिन पत्नी द्वारा बार बार उत्तेजना दिलाये जाने पर वह तैयार हो गया। अगले दिन सवेरे ही वह पास के जंगल मेंपहुंचा और आक चबाने लगा। आक चबाने के कारण वह तुरंत ही अंधा हो गया।उसे असह्य पीडा होने लगी। निदान वह किसी प्रकार अपने घर पहुंचा। अपनेपति की हालात देख कर पड़ोसिन को बड़ा क्रोध आया। वह सेठ सेठानी कीशिकायत करने के लिए अपने पति को साथ लेकर राजा के दरबार में पहुंची। राजाने सेठ को तलब किया। सेठ ने दरबार में हाजिर होकर सारी बात ज्यों की त्योंबतला दी और कहा कि मेरे कहने का आशय तो यह था कि ये रूपये बड़ी जिल्लतउठाकर लाया हूं। इन रूपयों के लिए मुझे वह काम करना पड़ा जो कदापि मेरेयोग्य न था और यदि कोई परिचित व्यक्ति मुझे उस हालत में देख लेता तो शायदमैं लौट कर मुंह दिखाने के लिए घर भी न आता। आक चबाकर लाने का तात्पर्यअपमान का कड़वा और विषैला घूंट पीना ही था। मेरा पड़ोसी अपनी मूर्खता केकारण अंधा बन बैठा। राजा ने भी सेठ की बात के औचित्य को स्वीकार कियाऔर प्रार्थी से कहा कि तुम अपनी मूर्खता के कारण अंधे बने हो।