Marwari rituals are a vibrant tapestry of customs and traditions that reflect the rich cultural heritage of the Marwari community. These rituals are deeply rooted in the values and beliefs of the community and are an integral part of Marwari life.

Marwari rituals are a testament to the community's deep-rooted cultural values and traditions. They not only serve as a way to celebrate important milestones in life but also act as a reminder of the community's rich cultural heritage.

Rituals - Neg Chaar (Riti Rivaaz)

बारहों महीने के प्रमुख पर्व-त्योहार, उत्सव, व्रत-पूजा, उद्यापण

भारतीय सनातन संस्कृति में पर्व-त्योहार, उत्सव, व्रत-पूजा एवं महापुरुषों, देवी देवताओं की जयंती की विशेष प्रतिष्ठा है, जिसके कारण यहाँ कोई दिन ऐसा नहीं जिसमें पर्व-त्योहार नहीं है। कोई तिथि ऐसी नहीं है जिसमें व्रत, पूजा, उत्सव न होता है। मारवाड़ी अग्रवाल समाज में होने वाले पर्व त्योहार, उत्सव, व्रत, पूजा, उज्जमन, उ‌द्यापण की जानकारी दी जा रही है। आप अपने पारिवारिक रीति, विधि व्यवस्था से करके अपने जीवन को सार्थक बनावें।

नोट: एकादशी तिथि को व्रतोपवास करके एक समय फलाहारी भोजन करना, त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करके श्री शंकर भगवान की पूजा करना, पूर्णिमा तिथि को व्रत करके श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करना, चतुर्थी तिथि के चन्द्रोदय के दिन व्रत करके चन्द्रमा को पूजा करना, अमावस्या तिथि को पितु कार्य पूजा करके धोक देना/ गाय को रोटी देना ब्राह्मण को भोजन कराना तथा सोमवार के दिन अमावस्या होने पर पीपल वृक्ष की पूजा करके परिक्रमा देना एवं 16-16 इच्छित वस्तु का दान करना, रविवार के दिन व्रत करके सूर्य देव की पूजा करना और बिना नमक का भोजन कराना, सोमवार के दिन श्री शंकर भगवान, पार्वती जी, श्री गणेश जी, श्री कार्तिकेय जी और श्री नन्दी जी की पूजा करना, मंगलवार के दिन श्री हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाना पूज्जा-पाठ करना, बुधवार के दिन श्री शंकर भगवान की पूजा और बुधदेव की कथा श्रवण करना, बृहस्पतिवार के दिन श्री बृहस्पति देव के चित्र को केलावृक्ष के पास रखकर हल्दी, पीला फूल, चनादाल, केला चढ़ाकर पूजा एवं कथा श्रवण करना, शुक्रवार के दिन श्री संतोषी माता जी की पूजा एवं कथा श्रवण करना, बना-गुड़ चढ़ाकर, खटाई रहित भोजन करना, शनिवार के दिन श्री शनिदेव की पूजा तिल, तेल, काला वस्त्र चढ़ाकर अथवा पीपल वृक्ष की पूजा एवं दीपक जलाकर आरती करना चाहिये।

नव वर्ष का शुभारभ

हिन्दू शास्त्र के अनुसार नव वर्ष का आरम्भ चैत्र शुक्ल पक्ष की एकम से होता है। इस दिन हमलोगों को अपने घरों पर मंगल चिन्ह से अंकित ध्वज लगाना तथा अपने प्रियजनों के यहाँ नूतन वर्ष की शुभ कामनाओं का पत्र भेजना चाहिये।

वासन्तिक नवरात्र-पूजा

चैत्र शुक्ल पक्ष की एकम से नवमी तक नवरात्र पूजा के लिये घर में शुभ स्थान पर कलश स्थापना करके अथवा श्री दुर्गाजी का चित्र, मूर्ति रखकर अथवा दिवाल पर श्री शक्ति चिन्ह अंकित करके अपनी रीत्ति एवं व्यवस्था अनुसार विधि पूर्वक से पूजा अराधना पाठ एवं आरती करनी चाहिये। पूजा एवं व्रत करने वालों को एक समय या दानों समय शाकाहारी अथवा फलाहारीया या फल एवं मिष्टान का भोजन करना चाहिये।

चैत्र का सिंघारा

चैत्र शुक्ल पक्ष की एकम। दूज। तीज के पहले दिन अपने यहाँ बहू-बेटियों के हाथों पर मेंहदी लगवानी चाहिये। घर पर इच्छानुसार पकवान बनवाकार या बाजार से मिठाई, नमकीन, फल वगैरह मंगा अपने सामर्थानुसार वस्त्र अथवा रुपयों के साथ बहन, बेटी, बहू को देना और बहन, बेटी के लिये उनके ससुराल और बहू अपने पीहर में हो तो बहू के लिये उसके पीहर भेजना चाहिये।

गणगौर की पूजा

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को जिसके घर पर गणगौर की पूजा की जा रही हो अथवा जिस स्थान पर सामाजिक आयोजन गणगौर की पूजा करने के लिये किया गया हो वहाँ सुहागन औरतों को एक थाली में जल की लुटिया, रोली, मोली, चावल, गेहूँ, मेंहदी, काजल, तेल का दीपक, द्रव्य, हलुआ वगैरह पूजा का सामान तथा सफेद कागज रखकर ले जाना चाहिये। वहाँ कागज या दिवाल पर सोलह-सोलह रोली, मेंहदी, काजल की टीकी लगाना, हलुवा की सोलह गोली बनाकर गणगौर पर चढ़ाना, चल का छींटा देना और गीत गाना चाहिये। पूजा करने के बाद अपने घर लौटकर एक कटोरी में हलुवा पर रुपया रख, हाथ फेर, सासु जी को देकर पाँव छूना चाहिये।

विवाह का उजमण

होली के पहले जिस लड़की की शादी हुई उस लड़की को प्रथम गणगौर की पूजा करने के अंतिम दिग यानी चैत्र शुक्ल पक्ष को तृतीया को गणगौर की पूजा करने के समय एक बर्तन में चार जगह आठ-आठ मोठी और आठ-आठ फीको माठी या सोहाली पर दो साड़ी, ब्लाउज, रुपया रख कर हाथ फेरना चाहिये। हाथ फेरी हुई माठी में से आठ फीकी विन्दायक को, आठ मोठी आठ फौकी ब्राह्मण को, आठ मोठी आठ फौकी लड़की को तथा आठ मीठी, आठ फोकी परिवार के सदस्यों को खाने के लिये देनी चाहिये। गणगौर के उजमण को मिठाई के चोलीया में जैवाई के लिये बीना हाथ फेरा हुआ आठ भौठी आठ फीको माठी या सोहाली रखकर भेजना चाहिये। अगर लड़की गणगौर पूजा के 1-2 दिन बाद ससुराल जाती हो चोलीया के साथ में देना चाहिये। लड़की को अपने ससुराल में पहुँचकर साडी, ब्लाउज, रुपया सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये। विवाह का उजमण अपनी रीति अनुसार करना तथा मिठाई का चोलीयी लड़की के सनुयल भेजना चाहिये।

गणगौर की विदाई

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर की पूजा करने के आद दिन में 16 कुआँ या 16 जगह से नल का जल मंगवाकर गणगौर को पिलाना चाहिये। दोपहर के बाद ईशर जी के तिलक का गरीगोला या नारियल सवा रुपया लेकर नव विवाहित लड़‌की को सहेलियों एवं औरतों के साथ गीत गाती हुई कुआँ पर पहुँच कर गणगौर को विसर्जन कर विदा करनी चाहिये।

गणगौर पूजा का उ‌द्यापन

मारवाड़ी समाज में नवविवाहित लड़की विवाह के प्रथम वर्ष होली के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की एकम से लेकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक गणगौर की पूजा विधि-पूर्वक करती है तथा तृतीया को विवाह का उजमण भी करती हैं तथा सभी सुहागन औरतें प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर की पूजा विधिपूर्वक करती हैं फिर गी औरतों को अपने जीवन काल में गणगौर पूजा का उद्द्यापण कराना जरुरी होता है। जिसके लिये चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया 17 सुहाग पिटारियों में अपने सामथांनुसार सुहाग का सामान (चूड़ी, सिंदूर, बिन्दी, काजल, तेल, साबुन, कंघा, दर्पण, मेंहदी वगैरह) चाँदी का पोली पाजेव, ब्लाउज पीस रखकर तथा एक थाली में 16 जगह चार-चार पूड़ी-हलवा या पूड़ी-बुन्दिया पर एक साड़ी ब्लाउज पीस, रुपया रख्ख हाथ फेरने के बाद एक सुहाग पिटारी एवं साडी, ब्लाउज पीस, रुपया सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये। सोलह सुहागन औरतों को भोजन कराने के बाद एक सुहाग पिटारी देना या परोसा के साथ सुहाग-पिटारी उनके घरों पर भेज देना चाहिये। एक बात ध्यान में रखना चाहिये कि जिस औरत ने अपने जीवन काल में गणगौर पूजा का उद्यापण नहीं कराया, उसकी मृत्यु होने पर अधी पर सुलाने के समय परिवार वालों को मि‌ट्टी की गणगौर बनाकर प्याली में रख उस मृत औरत के हाथ पकड़‌कर गणगौर की पूजा अवश्य करानी चाहिये।

राम नवमी

चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को दिन में 12 बजे अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नि कौशल्या के गर्भ से श्रीराम प्रकट हुए थे। श्रीराम के जन्म की खुशी में रामनवमी त्यौहार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकम से लेकर नवमी तक रामायण का पाठ करना कथा एवं कीर्तन का आयोजन करना चाहिये। श्रीरामचन्द्रजी की मूर्ति अथवा चित्र के पास रामायण पुस्तक रखकर पूजा-आरती करके प्रसाद वितरण करना चाहिये।

श्री हनुमान जयन्ती

चैत्र पूर्णिमा को भगवान शंकर के अंश से वायुदेवता द्वारा कपिराज केशरी की पत्नि अंजना के गर्भ से श्री हनुमान जी प्रकट हुए थे, इसलिये आज के दिन हनुमान जी का जनोत्सव मनाया जाता है। श्री हनुमान जी की मूर्ति पर घो, तिल, आँवला, चमेली तेल में सिंदूर मिलाकर लगाना, लाल लंगोटा चढ़ाना, लाल चोला पहनाना, फूलों का श्रृंगार करना, पेड़ा लड्डू, चूरमा का प्रसाद चढ़ाना तथा पूजा, आरती, वन्दना एवं हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये। श्रीहनुमान जी की प्रतिमा का स्पर्श औरतों को नहीं करना चाहिये। श्रीराम लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या आये थे और राम-जानकी ने सभी को उपहार देकर विदा किया था लेकिन हनुमान जी को सीताजी ने सिंदूर प्रदान किया और अजर-अमर का वरदान भी दिया था इसलिये हनुमान जी की प्रतिमा पर सिंदूर का लेप लगाया जाता है जिससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं ऐसा उल्लेख है।

सांपदा का डोरा खोलना

बैशाख कृष्ण पक्ष को किसी तिथि एवं शुभ दिन, चैत्र मास में डोरा लेने वाली औरतों को उपवास रहकर पादा पर एक लोटा जल को रङ, रोली से स्वास्तिक गांड, कथा सुनने के बाद डोरा को गले से निकाल पाटा पर रख देना चाहिये। पहले वाले जो के सोलह दानों को हाथ में रखकर लोटा के जल से सूर्य भगवान को अर्ग देने के बाद भोजन करना चाहिये।

उजमण

आठ वर्ष व्रत करने के बाद जब इच्छा हो, तब उजमण कर देना चाहिये। पहले दिन हाथों पर मेंहदी लगानी चाहिये और दूसरे दिन ओढ़ना ओढ़, नथ पहन, एक थाली में 16 जगह चार चार पूड़ी हलुवा पर एक साड़ी, ब्लाउज पीस, रुपया रख, रोली से चीरच, हाथ फेर, साड़ी ब्लाउज, रुपया सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये। सोलह मिसरानियों को भोजन कराते समय हाथ फेरा हुआ पूड़ी-हलुवा भी परोस देना चाहिये।

बुढ़ा-बासोडा

वैशाख कृष्ण पक्ष का सोमवार / बुधवार शुक्रवार के पहले दिन गुड़, चीनी का मीठा भात, गेहूँ तथा बाजरा के आटा की रोटी, आटा की मीठो और बेसन की नमकीन पकौड़ी, दही-बाजरा के आटा की राबड़ी, सब्जी, चटनी वगैरह की रसोई तैयार करनी चाहिये। रात में थोड़ा बाजरा पानी में भींगो देना चाहिये। दिन में कुम्हार की दूकान से जरुरत का सामान प्याली, हाड़ी, लुटीया वगैरह खरीदकर मंगाना चाहिये।

दूसरे दिन सुबह चावल और हल्दी को पीस कर रपटन तैयार करना चाहिये। अपने अपने पारिवारिक रीति के अनुसार गिनती की प्यालियों में मीठा घात, मीठी पकौड़ी, भींगोया बाजरा रखना तथा दो चाजरा की रोटी पर भी मोठा भात, मीठी पकौड़ी, भींगोया बाजरा रख, कच्चा सूता से लपेट कर एक थाली में सजाकर रखना चाहिये। परिवार के सभी सदस्यों द्वारा रपटन से चीरचा कर, बाजरा का दाना हाथ में देकर घोक्त दिलाने के बाद ही श्री शीतला माता के मंदिर औरतों को गीत गाती हुई जाना चाहिये। मिट्टी की लुटीया में जल पर घी रखकर माताजी की आँखों पर लगाना चाहिये।

बड़कुल्ला की एक छोटी जेल माला मंदिर की छत पर चढ़ानी चाहिये, शीतला माता की पूजा अर्चना कर जलेरी का जल आँखों में लगाना चाहिये। मंदिर के अन्दर शीतला माता की पूजा करने के बाद औरतों को बाहर एक इंटा पर एक प्याली चढ़ाकर पूजा करनी तथा कथा सुननी चाहिये और एक हरी डाली लेकर गीत गाती हुई घर लौट आना चाहिये आज के दिन परिवार के सभी सदस्यों को ठंही रसोई, नमकीन का भोजन करना चाहिए।

लड़का का जन्म एवं विवाह पर उजमण

श्री शीतला माता की पूजा के दिन लड़का की माँ को लड़‌का का विवाह करके अथवा लड़का का जन्म होने पर एक थाली में 9 कुण्डारा (प्याली) भरकर उस पर एक साड़ी, ब्लाउज, रुपया रख हाथ फेरना और साड़ी ब्लाउज रुपया सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये। प्यालियों में से कुछ श्री शीतला माता पर चढ़ाने के लिये ले जाना बाकी बाँट देना चाहिये।

राबड़ी बनाने की विधि

एक पाव दही में 100 ग्राम बाजरा का आटा मिलाकर 2-3 घंटे धूप में ख‌ट्टापन आने के लिये रखना चाहिये। रसोई तैयार करने के समय दही-बाजरा के मिश्रण में पानी डालकर कपड़ा से छालना और आँच पर किसी बर्तन में डालकर कढ़ी की तरह पका कर तैयार करना चाहिये तथा स्वाद के लिए सिर्फ नमक हो डालना चाहिये। इस प्रकार तैयार को हुई राबड़ी का सेवन करने से गर्मी के दिनों में लू से बचाव होता है और पेट भी ठंढा रहता है।

अक्षय तृतीया

वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को बद्रीनाथ धाम में श्री बद्रीनारायण भगवान के मंदिर का पट खुलता है इसलिये अपने घर पर अथवा मंदिर में भगवान की मूर्ति के सम्मुख एक कटोरा में भींगोयी चना की दाल और मिश्री पर तुलसी दल रखकर भोग लगाना और आरती करनी चाहिये। आज के दिन घड़ा, सुराही, बाल्टी में जलभर कपड़ा से ढक कर ब्राह्मण को देना चाहिये। चावल, दाल, आटा, घी, सब्जी, गमक, चीनी, फल, पंखा, छाता, चटाई, द्रव्य वगैरह अपने सामर्थ्य के अनुसार दान में देना चाहिये। घर के चहारदिवाली के बाहर जानवरों के लिये तथा छत पर पश्चियों के पीने के लिये पानी बर्तन में रखना चाहिये। राहगीरों के लिये प्याऊ खोलना अथवा पनशाला में आर्थिक सहयोग देना चाहिये। तृतीया तिथि को नर नारायण, परशुराम, हथग्रीव अवतरित हुए थे तथा त्रेतायुग का आरम्भ भी हुआ था।

नृसिंह जयंती

वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के संध्या समय प्रह्लाद की प्राण रक्षा के लिये भगवान खंभे को फाड़कर श्रीनृसिंह रुप में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का उद्धार किये थे। इसलिये संध्या समय मंदिर में जाकर अथवा घर पर भगवान की पूजा, आारती और बन्दना करनी चाहिये।

वट सावित्री पूजा

ज्येष्ठ की अमावस्या को अपनी रीति के अनुसार औरतों को सुबह वट वृक्ष की पूजा जल, रोली, मोली, चावल, फूल, फल गुड, भिंगोया चना, द्रव्य चढ़ा, दीप दिखा कर करनी चाहिये। बट-वृक्ष की परिक्रमा करते समय मोली और कच्चा सूता एक साथ मिलाकर वृक्ष पर लपेटना चाहिये। सावित्री व्रत की कथा सुनना तथा आज के दिन वट वृक्ष के पत्तों का गहना बनाकर गले अथवा कान पर धारण करना चाहिये। पूजा करके घर पर पहुँच एक कटोरी में भिंगोवा चना पर रुपया रख, हाथ फेर, सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये।

गंगा दशहरा

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन औरती को सुबह गंगा स्नान करके गंगाजी की पूजा दूध, बतासा, चेली, मोली, चावल, फूल, फल, द्रव्य, धूप दीप दिखा कर करनी चाहिये। आज के दिन हस्त नक्षत्र में श्री गंगा जी का आगमन हुआ था।

निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन बिना जल ग्रहण किये या फल का रस लेकर व्रत करना चाहिये। आज के दिन जल का घड़ा बाल्टी, पंखा, छाता, पादुका, चटाई, वगैरह का दान करना चाहिये।

औरतों के हाथों पर मेंहदी लगानी चाहिये और ओढ़ना ओढ़कर नथ पहन पाटा पर गिलास या मि‌ट्टी का करुआ में जल भर, मोली लपेट, उसके उपर प्याली में चीनी पर रुपया रखना चाहिये। करुआ/गिलास पर रोली से स्वास्तिक मांड, प्याली पर टीकी लगा, हाथ फेर, सासुजी को देकर पांव छूना चाहिये। द्वादशी के दिन अनाज का सिधा निकाल, हाथ जोड़ने के बाद ब्राह्मण को देना चाहिये।

हरि-शयनी एकादशी

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत करना और अपने-अपने पारिवारिक रीति अनुसार रात के समय देवता की पूजा करके भजन, गीत गाकर देवता को शयन कराना चाहिये। आज की रात्रि से भगवान श्री हरि क्षीर सागर में शेष शैय्या पर शयन करने चले जाते हैं। देव शयन होने पर चार महीना (सावन, भाद्रपद, आश्विन कार्तिक) में विवाह वगैरह जैसे शुभ कार्य ही करने चाहिये।

गुरु-पूर्णिमा

आषाढ़ पूर्णिमा को अपने गुरु की पूजा एवं आरती करनी चाहिये। गुरुको अपनी श्रद्धा एवं शक्ति के अनुसार वस्त्र, मिठाई, फल, द्रव्य वगैरह भेंट में देना चाहिये।

मारवाड़ी रीति-रिवाज की विधि-व्यवस्था