पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार।
ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
यदि घर में स्त्री कुनार (स्वार्थी, लोभी व मतलबी) है तो फिर बेचारा पुरूष कुछ नहीं कर सकता है। कारण, वह दो अंगुलियों जितना कपड़ा सियेगा तो कुनार चार गज कपड़ा फाड देती है। मतलब कि वह काम करने से ज्यादा बिगाड़ करती है। बचत कम और खर्चा ज्यादा करती है।
एक गांव में एक जाट रहता था। उसके कोई औलाद नहीं थी। घर में केवलवह और उसकी पत्नी दो ही जने थे। जाट स्वभाव का भोला और मेहनती था।दिन उगते ही वह अपने खेत में पहुंच जाता और दिन भर काम करता रहता था।जाटनी स्वभाव की तेज, खाने की शौकीन और बड़ी बातूनी थी। वह जाट के लिए रोटी साग बनाकर ले जाती और खुद खीर व हलुवा बनाकर खाती। एक दिन जाट सुबह जल्दी ही हल लेकर खेत जोतने गया और सूरज सिर पर आया तब तक खेत जोतता रहा। लेकिन जाटनी उसके लिए खाने का भाता लेकर नहीं पहुंची।इतने में संयोग ऐसा बना कि उसका हल टूट गया। इस कारण दूसरा हल लेने के लिए जाट को गांव में आना पड़ा। नया हल लेकर वह अपने घर गया, ताकि घर पर ही पेट भराई भी कर ले। उस सम जाटनी खीर और हलुवा बना कर तालाब पर पानी लाने के लिए गई थी। जाट भूखों मरता रसोईघर में पहुंचा तो उसे हलुवे की सुगंध आई। उसने इधर-उधर देखा तो एक बर्तन में हलुवा और एक बर्तन में खीर नजर आई। अब तो उसकी भूख दुगुनी हो गई। वह तो रसोईघर में ही जम गया और खीर व हलुवा दोनों चट कर गया। फिर नया हल लेकर खेत को वापस चलागया। पीछे जब जाटनी पानी लेकर घर आई तो उसने देखा कि रसोईघर में जूठे बर्तन पड़े हैं। वह चौंकी और उसने खीर व हलुवे के बर्तन देखे तो वे खाली थे।वह सारी बात समझ गई कि उसे यह चिंता हो गई कि उसकी पोल खुल गई, अब शाम को जाट घर आएगा तो न जाने क्या करेगा। भूखी मरती उसने जैसे तैसे जाट के लिए बनाई रोटियां खाई और फिर गांव में निकल गई। गांव का ठाकुर पिछले कई महीनों से बीमार था। वैद्य-हकीम इलाज कर कर के थक गए, लेकिन ठाकुर ठीक नहीं हुआ। आज ठाकुर कुछ ज्यादा ही बीमार था और लोग जगह-जगह ठाकुर की बीमारी की बातें कर रहे थे। जब जाटनी ने ठाकुर की बीमारी के बारे में सुना तो अचानक उसके मन में विचार आया कि जाट के गुस्से और नाराजगी से बचने का अब यही उपाय है। और उसने वहां खड़े लोगों से कह दिया कि मेरा जाट ठाकुर साब का इलाज कर सकता है। लोगों ने जाकर रावले में बात कही तो कामदार ने तुरंत अपने आदमियों को हुकम दिया कि जाकर खेत में जाट को लेकर आओ। जब ठाकुर के आदमी खेत में पहुंचे तो जाट घबरा गया और कोई बहाना बना कर वहां से भाग छूटा। ठाकुर के आदमी पीछे दौड़े और उसे पकड़ लिया। फिर ले जाकर ठाकुर के पास हाजिर किया। ठाकुर की तबियत आज बहुत खराब थी, इसलिए वह अचेत-सा पड़ा था। जाट को कामदार ने कहाकि अब ठाकुर साहब की जिंदगी तुम्हारे हाथ में है, तुम्हारी स्त्री ने कहा है कि तुम इन्हें ठीक कर सकते हो। जाट मन में सोचने लगा कि आज तो बुरे फंसे। फिर धीरे से बोला कि झाड़ा-झपटा तो मैं जानता हूं सो कर दूंगा, लेकिन आगे तो राम रखवाला है। इतना कहकर जाट ने एक नई बुहारी मंगवाई और हाथ-मुंह धोकर झाड़ा डालने लगा। इतने में जाटनी भी वहां आ गई। जाट ने उसकी ओर कठोर नजर से देखा और फिर बुहारी ठाकुर के शरीर पर फटकारता हुआ मन में गुनगुनाने लगा कि - क्यों हल टूटे यों घर आऊं, क्यों इस रांड की खीर खाऊं, क्यों ठाकुर को वैद कहाऊं, क्यों इस रगड़े में फंस जाऊं, सहायता करो मेरे गोगा पीर, कभी न खाऊं इस रांड की खीर। जाट को झाड़ा डालते आधा घंटा हुआ कि ठाकुर ने आंखें खोली। जाट के मन में थोड़ी हिम्मत आई और वह जोर-जोर से झाड़ा डालने लगा।कुछ देर बाद ठाकुर ने पानी मांगा तो सभी बहुत प्रसन्न हुए और जाट से कहने लगे कि महाराज, आप तो साक्षात् भगवान के अवतार हो। आप ठाकुर साहब को अवश्य ठीक कर देंगे। जाट तो अब झाड़ लेकर शुरू हुआ, सो झाड़ा डालता हीगया, डालता ही गया। धीरे-धीरे ठाकुर को पूरा होश आ गया। उन्होंने जाट की ओर देखते धीरे-धीरे कहा कि महाराज, अब मेरे जीव को थोड़ा आराम है। मेरे लिए तो आप भगवान हो। उम्र के ये दिन आपके दिए ही हैं। ठाकुर को होश आनेका समाचार अब रावली ड््योढी में पहुंचे तो ठकुरानी की खुशी का पार नहीं रहा।उसने रावले में घी के दीप जलाए। एक प्रहर रात बीती तब तक तो ठाकुर ने पलंगही छोड़ दिया और उठने-बैठने योग्य हो गए। सुबह जब ठाकुर नहा-धोकरदरीखाने पहुंचा तो गांव के सारे लोग इकट्ठे हो गए। हरेक की जुबान पर जाट का नाम था। ठाकुर ने जाट-जाटनी को बुलाया। दोनों का बड़ा समान किया और अच्छी भेंट देकर रवाना किया। घर जाने पर जाटनी बोली कि देखा मेरी खीर का कमाल? जाट ने कहा कि यह तो गोगा पीर ने मेरी लाज रखली, अन्यथा तूने तो मुझे पिटवाने में कोई कसर नहीं रखी थी।