सीख उणां नै देइजो, ज्यां नै सीख सुहाय। सीख न देइजो बांदरा, घर बया को जाय।।

सीख उणां नै देइजो, ज्यां नै सीख सुहाय। सीख न देइजो बांदरा, घर बया को जाय।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

सीख उणां नै देइजो, ज्यां नै सीख सुहाय।
सीख न देइजो बांदरा, घर बया को जाय।।

सीख तो उनको देनी चाहिए, जिनको सीख सुहाती है। बंदरों को सीख कभी मत देना, क्योंकि बंदरों को सीख देने पर बया का अपना घर गंवाना पड़ा था। अर्थात मुफ़्त की सीख देने से बचना चाहिये... पता नहीं कौन कब बंदर बन जाये और आप ही का नुकसान कर दे।

किसी जंगल में एक पेड़ पर एक बये का घोंसला था। संध्या समय बया बयी उसमें मौज से बैठे थे। बरसात का मौसम थ। बादल घिर आए। बिजली चमकने लगी। बड़ी बडी बूंदे पडऩी शुरू हुई। धीरे-धीरे मूसलाधार पानी गिरने लगा। लेकिन अपने मजबूत घोंसले में बैठे होने की वजह से वे दोनों बेफिक्र थे। इसी बीच एक बंदर पानी से बचने के लिए उस पेड़ पर चढा। पेड़ के पत्ते वर्षा से उसकी रक्षा करने में असमर्थ थे। कभी वह नीचे जाता, कभी वह ऊपर आता। इतने में ओले गिरने आरंभ हो गए। ठंड के मारे बंदर किंकिंयाने लगा। बये से रहा नहीं गया।वह बोला कि मानुस के से हाथ पांव मानुस की सी काया, चार महीने बरखा होवै,छप्पर क्यों नहिं छाया? देखो, हम तो तुमसे छोटे जीव है, लेकिन कैसा घोंसाला बनाकर आराम से रहते हैं। तुम भी हाथ पैर हिलाते तो क्या कुछ बना न पाते? इस सीख पर बंदर बुरी तरह बिगड़ा और लपकर एक हाथ से बये का घोंसला नोच डाला। बया और बयी उडक़र दूसरे पेड की डाल पर जा बैठे। उन्हें मालूम नहीं था कि सीख देने का यह अंजाम होगा कि अपने ही घर से हाथ धोना पड़ेगा।