BADI DEEPAWALI - बड़ी दिवाली
बड़ी दिवाली - कातिक की अमावस न 'दिवाली' आ व । बडी दिवाली दिवाली रौ मुख्य दिन होवे है, जे मां लक्ष्मीजी री पूजा, दीप जलाविणा अने रंगोळी सजाविणा रा विशेष रिवाज होवां है।
TEEZ TYOYHAAR
MARWARI PATHSHALA
10/31/20241 min read
बड़ी दिवाली
कातिक की अमावस न 'दिवाली' आ व । इ दिन सवे रहनुमानजी, पीतरजी की धोक मा र। जल, मोली, रोली, चावल, फूल मिठाई, अबीर-गुलाल, दक्षिणा चढ़ा ब । नारियल पधार के चढ़ाव । धूप दीप क र । आपको मन हो व तो लक्ष्मीजी को व्रत कर।रात न पूजा करन क लिये दिवाल पर चू न स पोत कर, गेरू या सब रंगा स गणेशजी, लक्ष्मीजी मां ड । बजार से भी गणेशजी,लक्ष्मीजी की माटी की मूर्ति मंगा व। दसरावा न जो बही-बसना बनाना देव, जिका भी मंगा लेव । घर म सब कोई पीसा क हाथ लगा कर, बई पीसा को तेल भैरूजी क या चोराहा पर चढ़ा व । संजा न दाल को सीरो, पूड़ी, बड़ा, कैरिया, फली, पापड़ और आपको मन हो व जिकी रसोई बणवा व । ग्यारह पूड़ी और सब तरह की थोड़ी-थोड़ी चीजां देई-देवता क नाम की छत्ती निकाल कर ब्राह्मण ने दे दे व । ब्राह्मण न जिमा व ।
संजा न जीम न क पहले सब पुरुष गद्दी म सूरज की साख स दीया पूजन कर। दो खूमचा म तेरह-तेरह दीया और एक-एक चौमुखी दीयो तेल-बात्ती घाल कर चा स। जल, मोली, रोली, चावल, फूल, गुड़ की सुहाली, गुड़, अबीर-गुलाल, दक्षिणा चढ़ा कर पूजा कर। धूप खे व । फेरी दे व । पिछ सब पुरुष जीम ले व । जीम न क बाद इसी तरियां घर म भी दीय सजा कर सब स्त्री-पुरुष पूजन क र। पि छ एक चौमुखो और छ छोटा दीया तो दिवाल पर मांडेड़ा लक्ष्मीजी क आ ग एक पाटो बिछा कर र ख दे व, और सारा दीया आप क घर म सब जगां रख दे व । तिजूरी वाला गणेशजी, लक्ष्मीजी क आग और सारा कमरा म, घर म धूप कर । और सारी स्त्रियां तो जीम ले व, व्रत क र जिकी दीया की पूजन कर क, तिजूरी वाल गणेशजी, लक्ष्मीजी की पूजा कर क जि म। आपकी बहूवां न रुपिया देव । बहूवां सासुजी न पगा लाग कर रुपिया दे व ।
रात न दिवाल पर मांडेडी लक्ष्मीजी क आ ग पाटा पर लाल कपड़ो बिछा कर बजार से मगायेड़ा गणेशजी-लक्ष्मीजी, एक बड़ा दीया म घी और नाल की बात्ती घाल कर, एक छन्नी म रुपिया माटी क चोपड़ म खोई और बतासा, चीनी का महल और लाड्डू र क्ख । सवा सेर चावल, गुड़, केला, मूली, हरी गुंवार की फली, गुड़ की सुहाली और दक्षिणा पाटा क पास रक्ख । अगर कोई क लक्ष्मीजी क आग चोक मांडता हो व, तो गेरू-चूना से मांड ले व । फेर बड़ा दीया न चास कर, दिवाल का और माटी का गणेशजी-लक्ष्मीजी की चौमुखा और छोटा दीया की और रुपिया की पूजा क र । जल, मोली, रोली, चावल और फूल चढ़ा व । लड्डू स जिमा व । मूंग-चावल का आखा घा ल। छोटा दीया स काजल पाड़ कर सब कोई घाल । पि छ बड़ा दीया पर चालनी ढक दे व । रात भर दीया चसता रहना चाहिये । या पूजा कर न क बाद चाकी, चुल्हा, सील, लोढा और छाजल के गेरु-चूना की टिक्की दे व । सुबह चार बजे सी एक पुराना छाजल म कूड़ो र ख कर, एक बेलन स छाजला न बजाता जा व और कहता जा व कि लक्ष्मी-लक्ष्मी आ व, दलिदर-दलिदर जा व । पि छ छाजलो और कूड़ो तो घर क आ ग गेर देव और बेलन पाछो ल्याकर र ख देव । पि छ लक्ष्मीजी की कहानी सुन। सबेर सारो चढ़ावो तो मिसरानी न दे दे व और रुपिया तिजूरा म रख ले व । गणेशजी लक्ष्मीजी को मूर्ति उठा कर रख ले व ।