बिन पीयां या जाणियै, किसो गंगजळ नीर। बिन जीयां या जाणियै, किसड़ो भोजन खीर।।

बिन पीयां या जाणियै, किसो गंगजळ नीर। बिन जीयां या जाणियै, किसड़ो भोजन खीर।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

बिन पीयां या जाणियै, किसो गंगजळ नीर।
बिन जीयां या जाणियै, किसड़ो भोजन खीर।।

बिन पिये कैसे पता चले कि गंगाजल कैसा होता है और बिना खाये कैसे जाना जा सकता है कि खीर कैसी होती है। तात्पर्य यह कि कोई भी कार्य किये बिना कैसे जाना जा सकता है कि वह कैसा है? अतः छोटे से छोटे कार्य में भी बड़ा आंनद मिल सकता है!

किसी नगर में एक राजा राज करता था। उसके एक रानी थी। उस रानी को कपड़ों और गहनों का बड़ा शौक था। कभी सोने के कर्णफूल चाहिए तो कभी हीरे का हार, कभी मोतियों की माला चाहिए तो कभी कुछ। कपडों की तो बात ही निराली थी। भागलपुरी तसर और ढाके की मलमल के बिना उसे चैन नहीं पड़ता था। सोने के लिए फूलों की सेज। फूल भी कैसे? खिले नहीं, अधखिली कलियां, जो रात में धीरे धीरे खिलें। नौकर कलियां चुन चुन कर लाते, दासियां सेज सजाती। एक दिन संयोग से अधखिली कलियों के साथ कुछ खिली कलियां भी आ गई। अब तो रानी की बैचेनी का ठिकाना नहीं। उनकी पंखुडिया रानी के शरीर में चुभने लगी। नींद गायब हो गई। दीपकदेव अपना उजाला फैला रहे थे। रानी की यह देशा देखकर उससे रहा नहीं गया। बोले कि रानी, अगर कभी मकान बनाते समय तसलेभर भर कर गिलावा और चूना देने, मजदूरी करने की नौबत आ जाए तो तुहें कैसा लगेगा? क्या तसलों का ढोना इन कलियों से भी ज्यादा अखरेगा? रानी सवाल सुनकर अवाक रह गई। उसने कोई जवाब नहीं दिया, परंतु तब तक राजा जाग गए थे और उन्होंने सारी बात सुन ली थी। उन्होंने रानी से कहा कि रानी, दीपकदेव के सवाल को एक बार आजमा कर तो देखो। रानी राजी हो गई। राजा ने काठ का एक कठघरा बनवाया। उसमें रानी को बंद कराकर पास की नदी में बहा दिया। कठघरा बहते बहते किसी दूसरे नगर में नदी किनारे जा लगा। संयोग से वहां राजा का बहनोई राज करता था। वह नदी पर सैर के लिए आया हुआ था। उसने कठघरे को बहते देखा तो निकलवालिया। खोला तो उसमें एक सुंदर स्त्री निकली। रानी के गहने और बढिया कपड़े तो पहले ही उतार लिये गए थे। वह मोटे फटे चीथडे पहने हुए थी। राजा उसको पहचान न सका और न रानी ने ही अपना सही पता बताया। राजा ने पूछा कि तुम क्या चाहती हो? रानी ने अपनी इच्छा बताते हुए कहा कि आपको कोई मकान बन रहा हो तो मुझे तसला ढोने का काम दे दीजिए। राजा का नया महल बन रहा था, सो उसने रानी को तसला ढोने के काम पर लगा दिया।

अब रानी दिन भर तसला ढोती और मजदूरी के जो पैसे मिलते उनसे अपना गुजर कर लेती। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद जो रूखा सूखा मिलता, वही उसे बड़ा अच्छा लगता और रात को खुरदरी चटाई पर उसे ऐसी नींद आती कि पता न चलता, कब रात निकल गई। बड़े तडक़े वह उठ जाती और तैयार होकर बडी उमंग के साथ अपने काम में जुट जाती। इस तरह काम करते करते उसे बहुत दिन बीत गए। वह दीपकदेव के सवाल का जवाब दे रही थी। देवयोग से एक बार उसका पति अपने बहनोई के यहां आया। दरअसल रानी के बिना उसका मन नहीं लगता था। इसलिए वह अपने राज्य से बहनोई के राज्य में आया ताकि समय कट सके। जब उसे पता चला कि बहनोई का नया महल बन रहा है तो वह नये महल को देखने को उत्सुक हुआ। तब बहनोई उसे लेकर वहां पहुंचा, जहां उसका नया महल बन रहा था। वहां अचानक उसकी निगाह रानी पर पड़ी। उसने झट उसे पहचान लिया। मेहनत मजदूरी करने से रानी का रंग कुछ सांवला हो गया था। पर उसका बदन कस गया था। रानी ने भी राजा को पहचान लिया। राजा ने उसके पास जाकर पूछा कि कहो, तसलों का ढोना कैसा लग रहा है? रानी ने कहा कि कलियां देह में गड़ती थी, पर तसले नहीं गड़ते। राजा के बहनोई ने दोनों की बात सुनी। उन्हें बड़ा अचंभा हुआ। उन्होंने पूछा कि क्या बात है? तब राजा ने सारा हाल कह सुनाया। सुनकर बहनोई को बड़ी लज्जा आई कि रानी उसके महल के निर्माण में मजदूरी कर रही है। उसने रानी को काम से छुटटी दे दी। तब राजा रानी को लेकर अपने राज्य लौट आया। कुछ दिनों बाद राजा ने रानी से पूछा कि रानी, अब कैसे लगता है? रानी ने कहा कि स्वामी, वह आनंद कहां? आल्सय बढता जा रहा है। डर लगता है कि कहीं कलियां फिर से न गडऩे लगें। राजा ने कहा कि ऐसा है रानी, तो हम एक काम क्यों न करें। दोनों मिलकर दिन भर कुछ मजूरी किया करें। रात को कलियों की सेज पर सोया करें। ठीक है न? रानी ने कहा कि मजूरी करेंगे तो फिर कलियों की कोई दरकार ही नहीं रह जाएगी। यों ही नींद आ जाया करेगी। उस दिन से राजा और रानी खुद भी कुछ मेहनत मजूरी करने लगे और उनका जीवन और भी आनंद से बीतने लगा।