उर नभ जितै न ऊगवै, ओ संतोस अदीत। नर तिसना किसना निसा, मिटै इतै नह मीत।।
उर नभ जितै न ऊगवै, ओ संतोस अदीत। नर तिसना किसना निसा, मिटै इतै नह मीत।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
उर नभ जितै न ऊगवै, ओ संतोस अदीत।
नर तिसना किसना निसा, मिटै इतै नह मीत।।
‘‘जब तक हृदय रूपी आकाश में संतोष रूपी सूर्य नहीं उगता है, तब तक मनुष्य की तृष्णा रूपी काली रात नहीं मिटती है। तृष्णा से पार पाने के लिए संतोष जरूरी है।’’
एक सेठ अत्यधिक धनवान् था। जब उसकी मृत्यु हुई तो उसने अपनी संतान के लिए बहुत सारी जायदाद और धन-दौलत छोड़ी। सेठजी की मृत्यु के बाद जब उसने सारा काम सहाला, तो उसने मुनीमजी से पूछा कि मुनीमजी, पिताजी कितनी धन-दौलत छोडक़र गए है? मुनीम ने उत्तर दिया कि आपके पिताजी द्वारा छोड़ी हुई संपति तेरह पीढियों तक समाप्त नहीं होगी। रात को सेठ के लडक़े ने सोचा कि तेरह पीढियों तक तो ठीक है, लेकिन चौदहवीं पीढी में क्या होगा? इसी सोच-विचार में उसे रात को नींद नहीं आई और वह कुछ बीमार-सा हो गया। दूसरे दिन जब मुनीम आया तो उसने उनसे सब हाल कह सुनाया। तब मुनीम ने कहा कि आपसे इस रोग का इलाज मेरे पास है। आप एकादशी का व्रत कीजिए तथा अगले दिन ब्राह्मण को भोजन करा के कुछ दक्षिणा दे दीजिए। मुनीम के कहे अनुसार सेठ के लडक़े ने एकादशी का व्रत रखा। अगले दिन वह एक ब्राह्मण को अन्न, घी तथा दान-दक्षिणा के रूप में रूपये देने को अद्यत हुआ। तब ब्राह्मण बोला कि ठहरिए, मैं अपनी स्त्री से सब हाल मालूम करके आता हूं। ब्राह्मण अपने घर गया और अपनी पत्नी से पूछने लगा कि आज के लिए हमारे पास खाने-पीने को तो पर्याप्त है न? उसकी पत्नी ने हांमें उत्तर दिया। ब्राह्मण ने वापस आकर सेठ के लडक़े से कहा कि मेरे पास तो खाने के लिए आज पर्याप्त है, इसलिए मैं तो आपसे कुछ नहीं ले सकता। आप किसी अन्य को दें। सेठ के लडक़ेे ने कहा कि लेकिन कल के लिए क्या होगा? आप कल के लिए ले लीजिए। हैं तो इतना दे रहा हूं कि आपको दो-तीन महीने काम देना। ब्राह्मण बोला कि मैं दो-तीन महीनों के लिए अन्न तथा धन इकट्ठा नहीं करता । मैं तो केवल आज को ही देखता हूं, दूसरे दिन के लिए चिंता नहीं करता। मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि वह दूसरे दिन भी भूखा नहीं रखेगा। यह उत्तर सुनकर सेठ का लडक़ा आश्चर्य में पड़ गया। वह सोचने लगा कि एक ओर यह ब्राह्मण है जो कल की भी चिंता नहीं करता और दूसरी ओर मैं हूं जो तेरह पीढियों के बाद की चिंता से दूखी और परेशान हूं। वह चुपचाप लौट पड़ा। उसका मानसिक रोग दूर हो गया।मुनीम ने जब उससे उसके रोग के बारे में पूछा तो वह बोला कि मुनीमजी, आपके बताये एकादशी का व्रत रखने से मेरा रोग तो एकदम दूर हो गया।