Marwari Muhavare & Khawate
अ-अः
अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं ।
अगम् बुद्धि बाणिया पिछम् बुद्धि जाट ...बामण सपनपाट ।
आंध्यां की माखी राम उडावै ।
आसोजां का पड्या तावडा जोगी बणग्या जाट ।
ऊन'रै को जायेड़ो बिल ही खोदै ।
क-घ
क ख ग घ ड़, काको खोटा क्यों घडै ।
कपूत हूँ नपूत भलो ।
कर रै बेटा फाटको, खड्यो पी दूध को बाटको ।
काणी के ब्याह में सो टेड ।
काम का ना काज का ... ढाई मण अनाज का ।
कौड़ी बिन कीमत नहीं सगा नॅ राखै साथ, हुवै जे नामों (रूपया) हाथ मैं बैरी बूझै बात।
खरी कमाई घणी कमाई ।
खेती करै नॅ बिणजी जाय, विद्या कै बल बैठ्यो खाय ।
गादड़ै की मोत आवै जणा गांव कानी भागै।
गोदी मैं छोरो गळी मैं हेरै ।
घी सुधारै खीचड़ी, और बड्डी बहू का नाम ।
घैरगडी सासू छोटी भू बडी ।
च-झ
च्यार चोर चौरासी बाणिया, बाणिया बापड़ा के करँ ।
छड़ी पड़ै छमाछम, विद्या आवै धमाधम।
ज्यादा स्याणु कागलो गू मैं चांच दे ।
जाओ लाख रैवो साख, गई साख तो बची राख ।
जंगल जाट न छोड़िये,हाटां बीच किराड़। रांगड़ कदे न छोड़िये,ये हरदम करे बिगाड़।।
जमीन ऍर जोरु जोर की नहीं तो कोई और की।
जाट जंवाई भाणजो, रेवारींरु सुनार । ऐता नहीं है आपणा, कर देखो उपकार ।।
जाट बलवान जय भगवान ।
जाट मरा जब जानिये जब चालिसा होय ।
जैं करी सरम, बैंका फूट्या करम ।
जो गुड़ सैं मरै बी'नै जहर की के जरुरत।
ट-ढ
डाकण बेटा ले क दे ।
त-न
तीज त्यौहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर।
दियो लियो आडो आवै ।
दूसरे की थाळी मँ घी ज्यादा दीखॅ।
दूसरे की थाळी में सदा हि ज्यादा लाडू दीखैं ।
धन्ना जाट का हरिसों हेत, बिना बीज के निपजँ खेत।
नानी फंड करै, दोहितो दंड भरै ।
नेपॅ की रुख खेड़ा'ई बतादें ।
प-म
पूत का पग पालणें में ही दीख जा हीं ।
पत्थर का बाट - जत्ता भी तोलो, घाट-ही-घाट ।
पीसो हाथ को, भाई साथ को ही काम आवै ।
बहुआं हाथ चोर मरावै, चोर बहू का भाई ।
बाप ना मारी मांखी, बेटो तीरंदाज ।
बाबो सगळां'नॅ लड़ॅ, बाबॅ'न कुण लड़ॅ ।
बिना बुलाया पावणा, घी घालूं कॅ तेल ।
बिना रोऍ तो मा'ई बोबो कोनी दे ।
बीन कॅ'ई लाळ पड़ँ जणा बराती के करँ ।
बैठणो छाया मैं हुओ भलां कैर ही, रहणो भायां मैं हुओ भलां बैर ही ।
भौंकँ जका काटँ कोनी ।
मन का लाडु खाटा क्यों ।
म्हानैं घडगी अ'र बेमाता बाड़ मैं बड़गी ।
मँगो रोवे ऐक बार, सस्तो रोवे सो बार ।
मानो तो देव नहीं तो भींत को लेव।
मेवा तो बरसँता भला, होणी होवॅ सो होय ।
मेह की रुख तो भदवड़ा'ई बता दें ।
य-व
रांड स्याणी हुवै पण कसम मर्यां फेर ।
रूप की रोवै करम की खावै ।
रूपयो होवै रोकड़ी सोरो, आवै सांस, संपत होय तो घर भलो, नहीं भलो परदेस।
रोता जां बै मरेडां की खबर ल्यावैं ।
श-ह
सरलायो छूंदरो, बद्दां बंध्यो जाट । मदमाती गूजरी, तीनों वारां बाट ।।
साबत रैसी सर तो घणाई बससीं घर।
सात घर तो डाकण भी छोड दिया करै है।
सावण भलो सूर'यो भादुड़ो पिरवाय, आसोजां मैं पछवा चाली गाडा भर भर ल्याव ।
हाँसी-हाँसी में हो-ज्यासी खाँसी ।