Prithviraj Chauhan: The Legendary Rajput King Who Defended India’s Honor (In Marwari)

Prithviraj Chauhan, one of India’s most celebrated Rajput kings, ruled during a period of significant challenges and change in Indian history. Born in 1149, he was the last independent Hindu king to sit on the throne of Delhi and is remembered for his valor, chivalry, and tragic conflict with Muhammad Ghori, the Sultan of the Ghurid Empire. Prithviraj’s legacy has endured for centuries through folklore, ballads, and historical texts, portraying him as a fearless warrior and a hero of Rajasthan’s proud tradition of valor.

HISTORICAL FIGURES

Marwari Pathshala

5/30/20241 min read

पृथ्वीराज चौहान: राजस्थान रो वीर योद्धा जो हिंदुस्तान री शान बचाई

परिचय

पृथ्वीराज चौहान, हिंदुस्तान री आखरी स्वतंत्र हिंदू राजा, रो नाम राजस्थान अणे समूचे भारत में वीरता, सम्मान अणे शौर्य रो प्रतीक मानलो जाय है। 1149 में जन्मे पृथ्वीराज, अजमेर अणे दिल्ली रो शासक रह्यो। मुघलों सौं पहले दिल्ली पर राज करन वाला यो आखरी राजपूत राजा वीरता, प्रेम अणे अपने दुश्मन मोहम्मद गौरी सौं भयंकर युद्धां खातिर आज भी याद राख्या जाय है।

बचपन अणे शासन में उदय

पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश में पैदा होया अणे बालपन सौं ही बुद्धिमानी, नेतृत्व अणे युद्ध कौशल में माहिर रह्यो। अपने पिता सोमेश्वर चौहान री अकाल मृत्यु पाछे ऊ युवा अवस्था में ही गद्दी पर बैठ्या। कच्ची उमर में ही, ऊ एक कुशल प्रशासक अणे योद्धा बनिया, जिणे उत्तर भारत में अपनी ताकत फैलाय दी।

अजमेर अणे दिल्ली री भूमि पर ऊ प्रजा में लोकप्रिय राजा रह्या अणे अपणों राज्य मजबूत करियो। ऊ कुशल सैनिक रणनीतिकार रह्या अणे आपणे दुश्मनां पर विजय प्राप्त करन में सफल रह्या।

संयोगिता री प्रेम कहानी

पृथ्वीराज चौहान री जिनगी री सबसे प्रसिद्ध कथा है आपरी प्रेम कहानी संयोगिता सौं। संयोगिता, कन्नौज री राजकुमारी, जिन रो आपणा पिता जयचंद पृथ्वीराज री प्रतिद्वंद्वी मानतां रह्या। जयचंद ने आपरी पुत्री री स्वयंवर में पृथ्वीराज ने आमंत्रित नाय करियो अणे अपमान रो प्रतीक थावण, स्वयंवर द्वार पर पृथ्वीराज री मूर्ति राख दी।

पर प्रेम री शक्ति अपणों काम करियो। संयोगिता ने मूर्ति ने माला पहनाय दी, अणे पृथ्वीराज आपणा बहादुर सैन्यां सौं स्वयंवर में पधार्या अणे संयोगिता ने लेकर निकल गया। यो घटना राजस्थान अणे राजपूत परंपराओं में प्रेम अणे बहादुरी रो प्रतीक बन गई।

मोहम्मद गौरी सौं युद्ध

पृथ्वीराज चौहान रो नाम मोहम्मद गौरी सौं युद्धां खातिर खास तौर पर याद करलो जाय। राजपूत सम्मान अणे विदेशी हमलावरां री लालच री यो टक्कर इतिहास में अमर है।

1. पहली तराइन री लड़ाई (1191): पृथ्वीराज अणे गौरी री पहली मुठभेड़ तराइन में होई। राजपूतां रो नेतृत्व करवा वाला पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी ने हराय दी। यो जीत उनकी वीरता रो प्रतीक बन गई।

2. दूसरी तराइन री लड़ाई (1192): परंतु, अगल वर्ष गौरी ने विशाल सेना सौं पुनः हमला करियो। भयंकर संघर्ष के बावजूद पृथ्वीराज पराजित हो ग्या अणे उन्हें पकड़ लियो ग्यो। यो घटना हिंदुस्तान री इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ बन गई।

अंतिम अध्याय अणे वीरता री कथा

पृथ्वीराज चौहान री मृत्यु री कथा चंद बरदाई री पृथ्वीराज रासो में सुनाय जाय है। कथा अनुसार, गौरी ने पृथ्वीराज ने अंधा कर दियो। लेकिन चंद बरदाई री मदद सौं पृथ्वीराज ने आखिरी बार गौरी ने मार डारियो। चंद बरदाई री अमर पंक्तियां:

*“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण;

ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान!”*

यो कथा पृथ्वीराज री अदम्य साहस अणे सम्मान री प्रतीक है।

विरासत अणे सांस्कृतिक महत्व

पृथ्वीराज चौहान रो जीवन अणे संघर्ष आज भी राजस्थान अणे हिंदुस्तान री आत्मा में बसलो जाय। लोकगीत, नाटक, अणे कथाएं उनके शौर्य अणे बलिदान ने याद करवा छूटे नाय। पृथ्वीराज रासो रो महाकाव्य इतिहास अणे मिथकों ने जोड़तो है अणे वीरता री मिसाल है।

पृथ्वीराज चौहान रो नाम केवल एक योद्धा के रूप में नाय, बल्कि एक महानायक के रूप में याद करलो जाय, जिन रो अपनी भूमि अणे प्रजा खातिर प्राणों रो बलिदान कर दियो। राजस्थान अणे मारवाड़ी संस्कृति में ऊ हमेशा प्रेरणा रो स्रोत बन्या रह्या।

निष्कर्ष

पृथ्वीराज चौहान री वीरता अणे देशभक्ति, राजपूत री महान परंपराएं रो जीवंत प्रमाण है। उनकी गाथा हमें साहस अणे समर्पण री शक्ति ने याद दिलावती है। राजस्थान रो यो अमर योद्धा आज भी हर दिल में बस्या है, अणे उनकी गाथाएं पीढ़ियां दर पीढ़ियां प्रेरणा देती रहेगी।